Mahakumbh Prayagraj 2025: प्रयागराज में इस समय महाकुंभ मेला चल रहा है जो हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है. इस मेले का मुख्य आकर्षण होते हैं नागा संन्यासी, जो अपनी विशेष पूजा पद्धतियों और स्नान के अनोखे तरीके से सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं. महाकुंभ के दौरान ये नागा संन्यासी अपने पूरे शरीर पर भस्म लगाकर गंगा स्नान के लिए निकलते हैं. यह दृश्य न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बहुत दिलचस्प है.
नागा संन्यासी
महाकुंभ का सबसे महत्वपूर्ण क्षण होता है अमृत स्नान, जब लाखों श्रद्धालु पतित पावनी मां गंगा में डुबकी लगाने के लिए जुटते हैं. इस दौरान नागा संन्यासी अपने शरीर पर भस्म मलकर, गंगा तट पर पहुंचते हैं. उनका उत्साह और भावनात्मक जुड़ाव मां गंगा से अत्यधिक गहरा होता है. स्नान के पहले, ये साधु अपने शरीर को शुद्ध करते हैं, ताकि गंगा के आंचल को कोई गंदगी न पहुंचे. इसके बाद वे धर्म ध्वजा के नीचे बैठकर, भस्म लगाते हैं, जिसे भस्मी स्नान कहा जाता है.
भस्मी स्नान
भस्मी स्नान का यह प्रचलन नागा संन्यासियों की एक प्राचीन परंपरा है, जो ना केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. इसके पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि गंगा की पवित्रता बनी रहे और गंगा तट पर कोई अशुद्धता न पहुंचे. भस्म शरीर पर मलने से शरीर को शुद्धि मिलती है और यह कचरे, बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक तत्वों को नष्ट करने का काम करता है. यह परंपरा भी इस बात को सुनिश्चित करती है कि गंगा में स्नान करते समय कोई गंदगी न जाए.
भस्मी स्नान के पीछे वैज्ञानिक कारण
स्नान से पहले शरीर पर भस्म लगाने का कारण केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक भी है. भस्म में कई ऐसे तत्व होते हैं जो हानिकारक बैक्टीरिया (harmful bacteria) और रोगाणुओं को समाप्त कर देते हैं. वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, भस्म में मौजूद केमिकल तत्व गंदगी को खत्म करते हैं और शरीर को स्वच्छ बनाए रखते हैं. संतों का मानना है कि भस्मी स्नान के बाद, अमृत स्नान की विशेषता और भी बढ़ जाती है और बीओडी (Biochemical Oxygen Demand) 10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जो शरीर के लिए लाभकारी साबित होता है.
नागा संन्यासियों का मां गंगा के प्रति असीम प्रेम
नागा संन्यासी का मां गंगा के प्रति अनगिनत श्रद्धा और विश्वास है. वे अपनी आत्मा और शरीर को पूरी तरह से गंगा के चरणों में अर्पित कर देते हैं. यह उनका विश्वास और आदर ही है, जो उन्हें भस्मी स्नान जैसी परंपराओं को निभाने के लिए प्रेरित करता है. नागा साधु अक्सर कहते हैं कि जब तक वे गंगा की गोदी में स्नान नहीं करते, उनका जीवन अधूरा रहता है. गंगा उनके लिए जीवन का अभिन्न हिस्सा है, और यह स्नान उनके पवित्रता की ओर पहला कदम है.
जूना, आहवान, निरंजनी और अन्य अखाड़ों के नागा संन्यासी
महाकुंभ के दौरान कई प्रमुख अखाड़े होते हैं, जिनमें जूना, आहवान, निरंजनी, आनंद, महानिर्वाणी और अटल अखाड़े प्रमुख हैं. इन सभी अखाड़ों के नागा संन्यासी भी अपनी-अपनी परंपराओं और विशेष पूजा विधियों के साथ गंगा स्नान के लिए पहुंचते हैं. प्रत्येक अखाड़ा अपनी विशेष परंपराओं और भस्मी स्नान के तौर-तरीकों को मानता है, जो उन साधुओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है. इन साधुओं का यह पवित्र कार्य न केवल भक्ति के प्रतीक होते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपरा का भी एक जीवंत उदाहरण हैं.
भस्मी स्नान
भस्मी स्नान केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है. यह परंपरा हमे यह सिखाती है कि धर्म और विज्ञान के बीच एक गहरा संबंध है. भस्म का उपयोग केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है. यह प्रक्रिया आज भी उन सभी साधुओं और भक्तों द्वारा जारी है, जो गंगा के तट पर पवित्र स्नान के लिए आते हैं.
महाकुंभ में नागा संन्यासियों का भस्मी स्नान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परंपरा और वैज्ञानिक प्रक्रिया का हिस्सा है. यह हमें यह सिखाता है कि हमारी प्राचीन परंपराएं केवल भक्ति के प्रतीक नहीं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए भी लाभकारी हो सकती हैं.